तुम लोग अपने दैनिक जीवन में प्रार्थना को कोई महत्व नहीं देते। मनुष्य प्रार्थना के मामले की उपेक्षा करता है। प्रार्थनाएँ सतही हुआ करती थीं, क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के सामने बस अनमना रहता था। किसी भी व्यक्ति ने कभी परमेश्वर के सामने पूरी तरह से अपना हृदय अर्पित नहीं किया और परमेश्वर से सच्ची प्रार्थना